यस आई एम—16 [सीक्रेट ऑफ आल्हादिनी]
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“कहना क्या चाहते हो तुम?” शैलजा ने आंखें दिखाते हुए पूछा। उसके चेहरे पर हैरानी के भाव थे।
“वो तो ये दोनों ही बताएंगे।” अभय ने बड़े ही सख्त लहजे में दोनों को धमकाते हुए कहा। जिसे सुनकर दोनों ही सहम गए।
“हम एक दुसरे को नही जानते।” नितिन ने लड़खड़ाई हुई आवाज में जवाब दिया।
“फिर इतना ज्यादा डर क्यों रहे हो?” अभय ने अपने लहजे को बरकरार रखते हुए पूछा।
“वो...वो तो बस त्रिशा दी के बारे में जानने के बाद आवाज ऐसी हो गई है।” कह कर नितिन आँखें चुराने लगा।
“ऐसा होता तो तुम नजरे नही चुराते।” अभय आगे कुछ कह पाता, उस से पहले ही शैलजा बोल पड़ी। “बस करो अभय! पुलीस वालें हो तो मतलब हर किसी पर शक करोंगे।” शैलजा का कहने का लहजा बड़ा ही सख्त था।
“पर दी!” कहते हुए अभय चुप हो गया। वह शैलजा की आंखो को अच्छे से पढ़ पा रहा था।
शैलजा को सामान्य होता हुआ देख अभय दोबारा बोला। “आप अच्छे से जानती है कि मै बिना बात किसी पर शक नही करता।” वह कुछ पल के लिए रुका और फिर आगे बोला। “आप से ये पूछना था कि नितिन इससे पहले भी कभी यहां पर आया था क्योंकि मै दुबे के अलावा यहां पर किसी को नहीं भेजता।”
“नही। मेरे और मेरी एसिस्टेंट के अलावा यहां पर कभी कोई नही आता।” शैलजा ने सपाट लहजे से जवाब दिया।
“ठीक है।” अभय ने कहकर एक लंबी गहरी सांस ली और फिर आगे बोला। “नितिन! अब तुम ही बताओ। मैने तो तुम्हें एड्रेस भी नही दिया था। फिर तुम यहां पर कैसे आएं?”
शैलजा के साथ साथ आल्हादिनी भी हैरानी के साथ अभय की बातें सुन रही थी।
“वो....वो....!” कहते हुए नितिन हकलाने लगा।
“सीसीटीवी की फुटेज चैक कर लेते है।” अभय ने वहां से चले हुए कहा।
“नही।” इतनी देर से खामोश आल्हादिनी ने मुंह खोला।
“पर क्यों?” शैलजा ने हैरानी के साथ पूछा।
“क्योंकि यहां पर कई बार मुझ से मिलने एक अनजान शख्स आया था।” आल्हादिनी ने सिर झुकाते हुए जवाब दिया।
“पर कौन और तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? बड़ी बहन मानती हो ना मुझे?” शैलजा ने एक साथ कई सवाल पूछ डाले। उसकी आवाज में हैरानी और गुस्सा साफ झलक रहा था।
“वो शख्स मै ही था।” नितिन ने धमाका करते हुए कहा।
“तुम थे?” आल्हादिनी के मुंह से अपने आप ही शब्द निकले। उसकी आवाज में हैरानी साफ दिखाई दे रही थी।
“तुम इसे नही जानती?” अभय ने आल्हादिनी से पूछा।
“नही। पर मुझे इसकी आवाज जानी पहचानी सी लगी थी।” आल्हादिनी ने सपाट भाव से जवाब दिया।
“तुम दोनों डिटेल से सारी बात बताओंगे। वो भी चुप चाप बिना किसी लाग लपेट के।” अभय ने बड़े ही सख्त लहजे में कहा।
“मै अपनी बहन को ढूंढ रहा था। उसी सिलसिले में एक दिन मेरी मुलाकात आल्हादिनी से हुई। मुझे पता चला कि यह एक फ्रोरेंसिक एक्सपर्ट है।
"मेरे बहुत काम आएगी, यही सोच कर मैने इसकी मदद करने का वादा किया और इस बात का दिलासा दिया कि जो काम यह करना चाहती है वो सिर्फ मै ही करवा सकता हूं और मै उस संस्था को भी जानता हूं। किसी भी रिश्ते से बड़ा दुःख का रिश्ता होता है।
दोनों ने एक ही तरीके से अपनों को खोया था। हालत की मारी आल्हादिनी ने मुझ पर यकीन कर लिया। बेचारी यकीन करने के वाला करती भी क्या? डूबते को तिनके का सहारा।
मैने अपने काम के लिए आल्हादिनी की मदद लेनी शुरू कर दी। मै किसी भी हाल में अपनी बहन को ढूंढना चाहता था। मुझे किसी भी चीज के बारे में पता करना होता मै आल्हादिनी से हेल्प मांगता और मजबूरी में उसे मेरी मदद करनी ही पड़ती थी।” नितिन ने छत को घुरते हुए बताया।
“तुमने कभी नितिन का चेहरा नही देखा था?” शैलजा ने हैरानी के साथ पूछा।
“नही! यह हमेशा मास्क लगाकर रखता था और मुझ से मिलने से पहले इसने मेरे बारे में सारी इन्फॉर्मेशन निकाल ली थी। ना चाहते हुए भी मुझे इसके लिए काम करना पड़ा। मजबूरी इन्सान से क्या कुछ नही कराती।” आल्हादिनी ने बताया। उसकी आवाज में दुःख साफ साफ झलक रहा था।
“वैसे किस काम में मदद चाहिए थी तुम्हें?” अभय ने भौह को तानते हुए पूछा।
“वो अपनी मम्मी को ढूंढने में।” आल्हादिनी ने सपाट भाव से जवाब दिया।
एक दस साल की लड़की, अपनी मम्मी के साथ बाजार से लौट रही थी। वह लड़की कोई और नही बल्कि आल्हादिनी थी। दोनों आपस में बातें करती हूं चल रही थी।
“मम्मी! पता है आज एक लड़का स्कूल में मुझे परेशान कर रहा था। पता है मैने उसका क्या इलाज किया?" आल्हादिनी ने बड़ी ही मासुमियत के साथ पूछा।
“किया क्या होगा? सिर फोड़ दिया होगा।” आल्हादिनी की मम्मी देवकी ने चलते हुए जवाब दिया। इस से पहले भी आल्हादिनी के स्कूल में उसके मार पीट के किस्से प्रसिद्ध थे। जिनकी कई बार घर पर शिकायत भी आ चुकी थी। स्कूल वाले आल्हादिनी जैसी होनहार बच्ची को खोना नही चाहते थे।
देवकी आल्हादिनी को अच्छे से जानती थी। वह दिल की बहुत अच्छी थी पर साथ दिमाग की बहुत गर्म भी। उसे छोटी सी छोटी बात पर भी गुस्सा आ जाता था।
“नही। मैने उसे टंगड़ी देकर गिरा दिया।” इतना कहते ही आल्हादिनी मुंह पर हाथ रख कर हंसने लगी। हंसते हुए वह बेहद प्यारी लग रही थी।
“ऐसा क्यों किया?” देवकी ने उसे डांटते हुए पूछा।
“क्योंकि वह लड़का दूसरों के काम में ज्यादा ही टांग अड़ा रहा था।” आल्हादिनी ने एक जगह पर रुकते हुए जवाब दिया।
“अच्छा!” देवकी ने सपाट भाव से जवाब दिया। वह अच्छे से जानती थी कि आल्हादिनी का कुछ नही हो सकता। इस से पहले भी वह उसे कई बार समझा भी चुकी थी। पर उसका कोई फायदा नही हुआ। आल्हादिनी हर बार हामी भर देती पर मौका मिलने पर वह तोड़ फोड़ भी कर ही देती थी। उसकी इस हरकत को देखते हुए देवकी ने भी उसे कहना बंद कर दिया था। आखिर थी तो वह उसकी ही बेटी, गुस्से में भी उसी पर गई थी।
दोनों आपस में बात कर रही थी। बातें करती हुई दोनों सुनसान इलाके में पहुंच गई। एक वैन बराबर से होते हुए दोनों के सामने आकर रूक है। वैन में से कुछ नकाबपोश बाहर निकल आए। बाहर निकलते ही वे आल्हादिनी की तरफ बढ़ने लगे। नकाबपोश के पास आते ही आल्हादिनी ने उन्हें बड़े जोर से धक्का दिया और वहां से भाग निकली।
छोटी सी लड़की से उन्हें इस धक्के की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। बाकि के तीन नकाबपोश भी आल्हादिनी की ओर बढ़ने लगे। पर देवकी ने उन्हें बीच में आकर रोक लिया।
काफी देर तक देवकी उनके साथ हाथापाई करती रही। पर अन्त में वह हार है। पर उसने अपनी बेटी को बचा लिया। नकाबपोशों ने आल्हादिनी की बजाए देवकी को उठा लिया और बड़ी ही फुर्ती के साथ वैन में बैठकर वहां से चले गए।
आल्हादिनी अपनी जगह पर खड़ी होकर जाती हुई वैन को बस देखती रह गई और फूट फूट कर रोने लगी। कोई भी उसकी मदद के लिए नही आया। बाद में रोते हुए वह अकेली ही घर चली गई।
“दादी! मम्मी को कुछ लोगों ने उठा लिया।” घर जाते ही आल्हादिनी ने रोते हुए बताया।
“किसी ने नहीं उठाया। भाग गई वो मुंह काला करके।” आल्हादिनी की दादी ने ताना मारते हुए कहा।
“नही... मेरे सामने ही उठा कर ले गए कुछ लोग उन्हें।” आल्हादिनी ने रोते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी बात कही। पर किसी ने भी उसकी बात पर यकीन नहीं किया।
किसी ने भी देवकी को ढूंढने की कोशिश तक भी नही की। यहां तक की आल्हादिनी के पापा ने भी नही। इस घटना के बाद आल्हादिनी का सबसे मन उचट गया। वह सभी से अलग थलग रहने लगी।
शुरूवात से ही उसे मैडिकल में रूची थी। वह गुस्सैल मिजाज की थी। हर वक्त उसके दिमाग में बस खून करने के तरीके ही उपजते थे। पसंद को ध्यान में रखते हुए आल्हादिनी ने फोरेंसिक एक्सपर्ट बनने का निर्णय लिया।
बडी होने के बाद आल्हादिनी ना जाने किस उम्मीद से अपनी मम्मी की खोज में जुट गई। उसे यकीन था कैसे ना कैसे, उसकी मम्मी एक दिन उसे जरूर मिल जाएगी। तहकीकात में उसे ऑर्गेनो गैंग के और उसके कारनामों के बारे में पता चला। साथ ही साथ बहुत सारे उसके सुराख भी हाथ लगे।
बताते हुए आल्हादिनी की आंखों में आंसू आ गए।
“देवकी जी मिल जाएगी। उम्मीद रखो।” शैलजा ने उसे गले से लगाते हुए कहा।
आल्हादिनी को कुछ अच्छा महसूस हुआ। अभय और नितिन दोनों आल्हादिनी को ही देख रहे थे। किसी का चेहरा देखकर उसकी बीती जिंदगी के बारे में पता नही चल सकता। मजबूत से मनजूत इंसान भी जिंदगी में एक बार बहुत बुरी तरह से टूट चुका होता है।
“मुझे माफ करना।” नितिन ने आत्मग्लानि के साथ कहा।
“कोई बात नही होता है। कोई किसी का दुःख नही समझ सकता।” आल्हादिनी ने सपाट भाव से अपनी बात कही।
“मै समझ सकती हूं।” शैलजा ने रूंधे हुए गले से कहा। सभी उसे देखने लगे। खुद को देखता हुआ पाकर शैलजा ने अपना मुंह घूमा लिया।
“क्या हुआ दी? आप भी कुछ छिपा रही हो क्या?” अभय ने शैलजा को अपनी तरफ घुमाते हुए पूछा।
“नही...।” कहकर शैलजा चुप हो गई।
“आपको मेरी कसम।” आल्हादिनी ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।
“ठीक है। बताती हूं।” कहकर शैलजा अपनी पुरानी यादों में खो गई।
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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️
hema mohril
25-Sep-2023 03:29 PM
Fabulous part
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Gunjan Kamal
24-Sep-2023 10:32 PM
शानदार भाग
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